रोहिंग्या मुसलमान कौन हैं?
रोहिंग्या लोग वो लोग हैं जो मूलतः भारत कि निवासी थे पर बर्मा में बस गए। जब बर्मा भारत से आज़ाद हुआ १९३९ में तब बर्मा ने अपना नाम बदल कर म्यांमार कर लिया और अपनी राजधानी का नाम रैंगून से बदल कर Yangon कर लिया। आपको वो मशहूर गाना तो याद ही होगा " मेरे पिया गए रैंगून वहाँ से किया है टेलेफ़ोन "।
अपनी आज़ादी के बाद जब बर्मा में नई सरकार बनी तो उस सरकार ने रोहिंग्या लोगों को मान्यता दी और उनका सम्मान किया। पर कुछ सालों बाद ही रोहिंग्या लोगों ने अलग मुल्क बनाने की जद्दोजहद शुरू कर दी। वो रोहिंग्या लोगों के लिए एक अलग राष्ट्र चाहते the। क्यूँकि rohingya लोग ज़्यादातर मुसलमान हिंदू हैं और बर्मा के लोग ज़्यादातर बौध धर्म मानने वाले।
रोहिंग्या लोगों ने सन १९६५ के बाद नया देश बनाने की मुहीम तेज़ कर दी। जिसके फलस्वरूप उनकी विश्वसनीयता पर वहाँ के मूल निवासी शक करने लगे। इसी बीच बर्मा में प्रजातांत्रिक सरकार गिर गयी और मिलिटेरी तानाशाही का आगमन हुआ। मिलिटेरी शासकों ने रोहिंग्या लोगों कि विद्रोह को दबाना शुरू किया और रोहिंग्या लोगों से उनकी बर्मा की नागरिकता छीन ली। रोहिंग्या लोगों ने विद्रोह को और तेज़ बना लिया और बांग्लादेश की मदत से सशस्त्र आंदोलन शुरू किया।
बर्मा के शासकों को चीन भारत और अन्य पड़ोसी मुल्कों का समर्थन हासिल है। और इज़्रेल उसे हथियार मुहैया कराता रहा है। बर्मा की सरकार विद्रोहियों से कहीं अधिक सशक्त है। आप आज जो rohingya लोगों के खीलाफ चल रहे बर्मा सरकार की ऑपरेशन जो देख रहे हैं वो इसी का नतीजा है।
बर्मा की सरकार ने विद्रोह को पूरी तरह कुचलने का मुहीम चला रखा है और वो आज की तारीख़ में एक बहुत बड़ा मानवहित उल्लंघन समस्या बन गया है।
हम उम्मीद करते हैं की rohingya लोगों को और वहाँ की सरकार दोनो को सदबुद्धि आएगी।
यह लेख पूरी तरह दबावहीन माहौल में निपक्ष होकर लिखा gaya hai। इस लेख डॉक्टर अमन सिंह ने लिखा है जो कि एक जाने माने दंत चिकित्सक हैं और लेखक भी। इन्होंने कई उपन्यास लिखें हैं। तथा देश विदेश पर नज़र रखते हैं। आप तक सच्चाई लेकर आना ही THE Viral Story का उद्देश्य है।
रोहिंग्या लोग वो लोग हैं जो मूलतः भारत कि निवासी थे पर बर्मा में बस गए। जब बर्मा भारत से आज़ाद हुआ १९३९ में तब बर्मा ने अपना नाम बदल कर म्यांमार कर लिया और अपनी राजधानी का नाम रैंगून से बदल कर Yangon कर लिया। आपको वो मशहूर गाना तो याद ही होगा " मेरे पिया गए रैंगून वहाँ से किया है टेलेफ़ोन "।
अपनी आज़ादी के बाद जब बर्मा में नई सरकार बनी तो उस सरकार ने रोहिंग्या लोगों को मान्यता दी और उनका सम्मान किया। पर कुछ सालों बाद ही रोहिंग्या लोगों ने अलग मुल्क बनाने की जद्दोजहद शुरू कर दी। वो रोहिंग्या लोगों के लिए एक अलग राष्ट्र चाहते the। क्यूँकि rohingya लोग ज़्यादातर मुसलमान हिंदू हैं और बर्मा के लोग ज़्यादातर बौध धर्म मानने वाले।
रोहिंग्या लोगों ने सन १९६५ के बाद नया देश बनाने की मुहीम तेज़ कर दी। जिसके फलस्वरूप उनकी विश्वसनीयता पर वहाँ के मूल निवासी शक करने लगे। इसी बीच बर्मा में प्रजातांत्रिक सरकार गिर गयी और मिलिटेरी तानाशाही का आगमन हुआ। मिलिटेरी शासकों ने रोहिंग्या लोगों कि विद्रोह को दबाना शुरू किया और रोहिंग्या लोगों से उनकी बर्मा की नागरिकता छीन ली। रोहिंग्या लोगों ने विद्रोह को और तेज़ बना लिया और बांग्लादेश की मदत से सशस्त्र आंदोलन शुरू किया।
बर्मा के शासकों को चीन भारत और अन्य पड़ोसी मुल्कों का समर्थन हासिल है। और इज़्रेल उसे हथियार मुहैया कराता रहा है। बर्मा की सरकार विद्रोहियों से कहीं अधिक सशक्त है। आप आज जो rohingya लोगों के खीलाफ चल रहे बर्मा सरकार की ऑपरेशन जो देख रहे हैं वो इसी का नतीजा है।
बर्मा की सरकार ने विद्रोह को पूरी तरह कुचलने का मुहीम चला रखा है और वो आज की तारीख़ में एक बहुत बड़ा मानवहित उल्लंघन समस्या बन गया है।
हम उम्मीद करते हैं की rohingya लोगों को और वहाँ की सरकार दोनो को सदबुद्धि आएगी।
यह लेख पूरी तरह दबावहीन माहौल में निपक्ष होकर लिखा gaya hai। इस लेख डॉक्टर अमन सिंह ने लिखा है जो कि एक जाने माने दंत चिकित्सक हैं और लेखक भी। इन्होंने कई उपन्यास लिखें हैं। तथा देश विदेश पर नज़र रखते हैं। आप तक सच्चाई लेकर आना ही THE Viral Story का उद्देश्य है।
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